मेहँदी हसन से एक श्रोता के तौर पर प्रथम परिचय एक वरिष्ठ मित्र के जरिये
किशोरावस्था में हुई थी , उनके अच्छे लगने की शुरुआत आज से तकरीबन
८-१० वर्ष पूर्व हुई और उनकी गायकी एवं स्वरों के समझाने की प्रक्रिया तो
बस आरम्भ ही हुई है| एक बार लताजी ने कहा था कि ईश्वर की आवाज़ तो
नहीं सुनी है पर मेहँदी हसन को सुनने के बाद लगता है जैसे उसकी एक झलक
पा ली हो| जब सुरों की कालजयी देवी किसी मानव कंठ के विषय में इस
प्रकार की स्थापना दे रही हो तो उस कंठ को सुनने का सहज ही उत्सुकता
जगती है| दर असल मेहँदी हसन हैं ही ऐसी चीज ,भारतीय उपमहाद्वीप
के आर पार तमाम कोनो पर बसे उनके प्रशंसक प्यार से उन्हें खान साहब
पुकारते हैं| अविभाजित भारत के राजस्थान इलाके में पैदा हुए खान साहब
के पूर्वज मुग़लों के दरबार में मोसिकी की महफिलें सजाया करते थे, तभी
से इस घराने को " कलावंत " की उपाधि दी गयी| मेहँदी साहब की गायकी
के जरिये आज हम संगीत के उस मयार का थोड़ा तजरबा करने में कामयाब
हो सकते हैं| खान साहब ने क्लासिकल मोसिकी की तमाम उपविधाओं
में अपनी अभिव्यक्तियाँ दी हैं पर जो विधा सबसे ज्यादा मकबूल
ए आम हुई जाहिर तौर पे वो ग़ज़ल गायकी की विधा है| कहा जाता
है की मेहँदी हसन दर असल ग़ज़ल को गाते नहीं बल्कि उसे सुरों का
लिबास पहना के कहते भर हैं , है ना चौकाने वाली बात, पर यह पूरी
तरह सच है कि ग़ज़ल अशआरों से मिलके बनती है और अशआर
गाये जा नहीं सकते सिर्फ कहे जा सकते हैं और उन्हें सुरों में कहना
और इस तरह कहना कि सुननेवाला गायकी का मुरीद हो जाए; इसके
लिए इसके लिए मोसिकी की एक खास तरबियत और तमीज दरकार
है जो आज की तारीख में जीवित लोगों में सिर्फ और सिर्फ खान साहब
में है|
वैसे तो खान साहब ने तमाम मकबूल-ओ-मारुफ़ शायरों
के अश आर को तरन्नुम का जामा पहनाया है पर चंद नाम जो बेसाख्ता
जेहन में उभरते हैं उनमे अहमद फ़राज़ , फैज़ अहमद फैज़ और आखिरी
मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर , जो बादशाह से ज्यादा शायर थे|
इस वक्त फ़राज़ साहब की ग़ज़ल 'अबके हम बिछड़े तो शायद कभी
खाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें' जेहन में
छाई हुई है , मोसिकी और शायरी के इस नायाब संगम के कभी
न उतरने वाले खुमार का एक कतरा आपकी खिदमत में इस विडियो
की शक्ल में पेश कर रहा हूँ, यहाँ ये बताते चलें की इस विडियो में
खान साहब के साथ तबले पर संगत उस्ताद तारी खान ने की है
और जैसा की आप पाएंगे सुननेवालों की तालियों का बड़ा हिस्सा
उनके हुनर के नाम है, कैसा लगा बताते चलिएगा, मुलाहिजा
फरमायें.........
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