खजुराहो:कला,अध्यात्म और इतिहास(२)
खजुराहो के अधिकांश मंदिर जेजाकभुक्ति(वर्तमान बुंदेलखंड) के चंदेल शासकोंद्वारा १०वी से १२वी शताब्दी के मध्य निर्मित कराये गए,यह इतिहास का वह काल
था जब राजनीतिक वातावरण उत्तर पश्चिम से लगातार पूर्व की ओर बढ़ते महमूद
ग़ज़नी के धनलोलुप आक्रमणों से आक्रांत था और धार्मिक सांस्कृतिक वातावरण
बौद्धों के वाममार्गी अतिचार की उन्मुखता तथा भागवत धर्म में देवताओं के मूर्ति
निरूपण से परिपूर्ण था| ऐसे राजनीतिक धार्मिक अनिश्चितता से भरे माहौल में
इस प्रकार के निर्माण का अवकाश कैसे मिला और उद्देश्य क्या था ? यह बहस
का मुद्दा हो सकता है,परन्तु इतिहास और धर्म का केवल आवश्यक सामान्य
ज्ञान रखने वाले आम पर्यटक के लिए इस निर्माण का जीवंत शिल्प और
उसकी प्रभावशीलता अधिक महत्व रखती है बजाय इसके उद्देश्य
पर होने वाली अंतहीन बहसों के|
मंदिर जिस क्षेत्र में अवस्थित हैं वह आज भी इतनी विरल आबादी का क्षेत्र
है कि इनके निर्माण काल में ऐसा जान पड़ता है कि यह क्षेत्र लगभग निर्जन
रहा होगा, एक बात और जो गौर करने कि है वो यह कि यह क्षेत्र तब भी और
आज भी किसी भी मुख्य मार्ग से हट कर है , जाहिर है स्थान का चयन कुछ
विशेष बातों को ध्यान में रख कर किया गया होगा| सभी मंदिर पश्चिम समूह,
पूर्वी समूह तथा दक्षिणी समूह के ३ समूहों में विभाजित हैं, वैसे प्रमुख रचनाएँ
पश्चिम समूह के परिसर में ही स्थित हैं, इसी परिसर के मुख्य द्वार पर
ए एस आई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) का टिकट बुकिंग कार्यालय भी
है तथा इस परिसर के ठीक विपरीत दिशा में मुख्य सड़क के दूसरी ओर
खजुराहो का मुख्य बाजार भी स्थित है जो जाहिर है पर्यटकों कि रूचि
के वस्तुओं से भरा पड़ा है| हम लोगों ने ठीक ए एस आई के बुकिंग
ऑफिस के सामने आक्रामक टेम्पो वाले को छोड़ा और टिकेट लेकर
पश्चिम समूह परिसर में प्रविष्ट हुए , प्रवेश द्वार से अन्दर आते ही
ठीक सामने पैदल मार्ग कि संकरी वीथिका जिसके दोनों तरफ ए एस आई
द्वारा तैयार किया गया हरी घास का लैंडस्केप बगीचा अपने यत्र तत्र
लगे प्रदर्शनीय पादपों (शो प्लांट्स) के साथ आगंतुक का सुरुचिपूर्ण
स्वागत करता प्रतीत होता है| संकरी वीथिका के अंतिम छोर पर
अपनी पूरी भव्यता के साथ अवस्थित है लक्ष्मण मंदिर , मंदिर कि बनावट नागर शैली
की है जिसमे विमान (शिखर), जगमोहन ,मंडप, महामंड़प,अर्धमंड़प, अंतराल
प्रदक्षिनापथ व् गर्भगृह सबकुछ अपनी प्रत्याशित स्थानों पर स्थित हैं, बल्कि
मैं तो यह कहूँगा की एक इतिहास के विद्यार्थी के लिए जिसने केवल अपने
पाठ्य पुस्तक में दी हुई मंदिर वास्तु शिल्प की शब्दावली के उपरोक्त
पदों की परिभाषा ही पढ़ी हो खजुराहो के ये मंदिर इन पदों के वास्तविक
मूर्तमान अर्थ व्याख्यायित करते हैं, स्वयं मेरी अवधारणा इन पदों की
दर असल पहली बार स्पष्ट हुई| लक्ष्मण मंदिर के जगत के समीप ही
शार्दूल की स्वतंत्र मूर्ति है तथा उसके ठीक विपरीत दिशा में वराह का एक
मंदिर है जो पत्थर का बना होने के बावजूद सदियों की शीत ग्रीष्म वायु
के थपेड़े खा खा कर कुछ इस कदर चिकना हो गया है की ताम्रवर्णी
धातु के बने होने का भ्रम पैदा करता है| लक्ष्मण मंदिर के पिछले हिस्से
की दीवार पर केंद्र में कुछ प्रसिद्ध मिथुन मूर्तियाँ हैं जिनपर खजुराहो
की ख्याति आमजनमानस में ज्यादा अवलंबित हैं, दर असल ऐसी मूर्तियाँ
चंद ही हैं और वो भी कुछ चुनिन्दा स्थानों पर, जैसे मंदिर की
पृष्ठ दीवार के बीचोबीच या मंदिर की जगत की दीवार में
सबसे ऊपर| केंद्रीय मूर्ति अधिकांशतः शिव,पारवती,चित्रगुप्त
सूर्य की हैं जबकि दीवारों पर सूर्य ,शिव पार्वती विलास के
चित्र या दिग्पालों(यम, कुबेर,गन्धर्व) के मुखमंडल उत्कीर्ण हैं|
काफी सारी मूर्तियाँ धर्मनिरपेक्ष विषयो यथा रोजमर्रा
के गतिविधियों की हैं इनमे जुलूस के दृश्य, आक्रमण करती
सेना, जंगली जानवरों की लड़ाई, श्रींगार रत आत्म मुग्ध नायिका इत्यादि|
(क्रमशः)
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