Thursday, April 12, 2012

एक  कविता का बयान -  गुंटर ग्रास


मैं क्यूँ रहूँ मौन , छिपाए इतनी देर तक
जो जाहिर है  और होता आया है
युद्धों में , जिनके पश्चात हम बच गए लोग
होते हैं ,बमुश्किल , हाशिए के लेख
यह  पहले वार करने का 'कथित' अधिकार है ,
जो कर सकता है विध्वंस
एक बडबोले द्वारा दमित
और सामूहिक तालियाँ पीटने को उकसाए गए
इरानी आम जन का ,
क्यूंकि 'उनकी' सत्ता की दृष्टि में
संदेह है ,जारी निर्माण का ,एक नाभिकीय बम के
फिर भी , मैं अपने को क्यूँ रोकूँ
नाम लेने से , उस देश का
जहाँ, वर्षों से, गुप-चुप
उफान पर है एटमी संभावना
बगैर रोकटोक,किसी भी नियंत्रण की चंगुल के परे ,
इन तथ्यों की सार्वभौमिक पर्दादारी ,
जिनके नीचे दबा था मेरा मौन ,
एहसास होता है मुझे अब ,एक आपराधिक झूठ का ,
दबंगई का -  दंड मिलना तय है
ज्यों ही इससे दृष्टि हटी ,
'एंटी-सेमीटीज्म्' का निर्णय जाना-सुना है

अब, चूँकि मेरे देश ,
जिसने  समय समय पर ढूंढा -जूझा है
अपने स्वयं के अपराधों से ,
अतुलनीय तरीके से ,
यदि वह सिर्फ मुनाफे की खातिर ,
शातिर जबान से प्रायश्चित के नाम पर
करता है वादा एक और यू-नौका ,इजरायल को
जो दक्ष है तमाम विनाशक जखीरे को दिशा देने में ,उस ओर
जहाँ एक भी एटम बम होना प्रमाणित नहीं
पर डरता है ,निर्णायक सबूतों की मांग से

मैं वह कहता हूँ ,जो कहा जाना चाहिए
पर क्यूँ रहा अब तक चुप ?
क्यूंकि मेरी जड़ें ,जो दूषित हैं उस अमिट कलंक से ,
नकारती रहीं इस तथ्य को ,घोषित सत्य के तौर पर
इजरायली राष्ट्र से कहने को ,
जिससे मैं जुड़ा हूँ ,और जुड़ा रहना चाहता हूँ ,
इसे मैं अब क्यों  कहना चाहता हूँ
आयु-जर्जर , लगभग अंतिम कृति में
कि पहले से ही दुर्बल विश्व-शांति के लिए
नाभिकीय शक्ति इजरायल एक खतरा है ?
क्यूंकि यह कहा जाना चाहिए
इस कहने को ,एक अगले दिन पर भी टालना ,बहुत विलम्ब हो सकता है ,
इसलिए और ,कि हम ,पहले से ही पर्याप्त शापित जर्मन
हो सकते हैं सहभागी एक और संभावित अपराध में ,
जिसकी किसी चलताऊ बहाने से नहीं हो सकता प्रायश्चित ,
और यह तय है कि अब मैं चुप नहीं रहूँगा
क्यूंकि पक चूका हूँ पश्चिम के ढोंग से ,
साथ ही यह भी उम्मीद की जानी चाहिए
कि यह तोडेगा कुछ औरों की भी चुप्पी ,
एक अपील :दृश्य खतरा उत्पन्न करने वालों से
हिंसा के परित्याग का ,
एक समान आग्रह का ,
एक निर्बाध व स्थाई नियंत्रण की ,
इजरायल की नाभिकीय क्षमताओं की ,
और इरानी नाभिकीय क्षमताओं की भी
किसी अंतर-राष्ट्रीय अभिकरण के हाथों ,
दोनों सरकारों के हाथों ,
सिर्फ इसी रास्ते ,हम इजरायली और फिलीस्तीनी
यहाँ तक कि इस उन्माद-ग्रस्त क्षेत्र के सभी लोग,
रह सकते हैं साथ-साथ , परस्पर ,शत्रुओं के मध्य
यही हमारी सहायता भी ..














4 comments:

  1. पहले तो बहुत आभार आपका इस कविता को अनूदित करने के लिए ...जहाँ तक मैं इसे समझ पाया हूँ ,कि यह अनुवाद काफी प्रवाहमय और अर्थपूर्ण है ...जाहिर है कि हमारी ईच्छा इसके अर्थ तलाशने की ही थी | और उसमे यह अनुवाद पुरी तरह से खरा उतरता है ....हार्दिक बधाई आपको ...

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  2. आपकी सारी बतिया सही है भाई ! बस जरा एक दूसरा नज़ारा भी देख लें ! ये कवि नाजी दल का सदस्य था और आज अफ़सोस जता रहा है ! वही नाजी , जिनका कृत्य " यहूदियों " के प्रति जगजाहिर है ! अपराध देर से स्वीकार करने या कलई देर से खुलने के कारण अपराध की तीव्रता कम हो जाती है क्या ?? मुझे तो ये कविता एक मक्कारी नज़र आती है ! इस कवि के अन्दर का नाजी भेष बदल के आया है, मानवीयता की आडं में ये छिप के वार कर रहा है और सोची समझी मानसिकता के तहत साम्राज्यवाद के खिलाफ चल रहे माहौल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहा है ! गौर से देखें तो पता चलेगा की यह शख्श इजरायल राष्ट्र को भी बड़ी चालाकी से नकार रहा है और इरान कट्टरपंथ- नाभिकीय इक्षा को " आम जन " की भावना बता रहा है ! अगर ये पश्चिम और इजरायल के राष्ट्रवाद को कोस रहा है तो ये इसका नाजी दर्द बोल रहा है, जो कभी पराजित हुआ था ! अब बताएं ! ये विवेचना कैसी है ? ha ha ....

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  3. संतोष जी की विवेचना भी एक पक्ष है.

    अनुवाद को लेकर बस इतना कि मूल कविता के साथ-साथ हिन्दी से भी न्याय ज़रूरी होता है. सिंटेक्स का थोड़ा और ध्यान रखा जा सकता था. फिर भी इस प्रयास के लिए शुभकामनाएं और धन्यवाद

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  4. कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अतुलनीय ...सराहनीय प्रयाश ..

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