tag:blogger.com,1999:blog-8688826834262331339.post8068763190141963180..comments2023-06-29T16:28:32.433+05:30Comments on सफरनामा: संतोष कुमार चौबेhttp://www.blogger.com/profile/14678422623297138411noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8688826834262331339.post-5598743001361760022012-10-27T11:07:09.710+05:302012-10-27T11:07:09.710+05:30कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अतुलनीय ...सराहनीय प्रय...कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अतुलनीय ...सराहनीय प्रयाश ..रवि शंकर पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/18051908706983733821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8688826834262331339.post-82264737273636189212012-04-23T13:19:35.665+05:302012-04-23T13:19:35.665+05:30संतोष जी की विवेचना भी एक पक्ष है.
अनुवाद को लेकर...संतोष जी की विवेचना भी एक पक्ष है.<br /><br />अनुवाद को लेकर बस इतना कि मूल कविता के साथ-साथ हिन्दी से भी न्याय ज़रूरी होता है. सिंटेक्स का थोड़ा और ध्यान रखा जा सकता था. फिर भी इस प्रयास के लिए शुभकामनाएं और धन्यवादAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8688826834262331339.post-73861185840314694332012-04-12T22:37:51.840+05:302012-04-12T22:37:51.840+05:30आपकी सारी बतिया सही है भाई ! बस जरा एक दूसरा नज़ार...आपकी सारी बतिया सही है भाई ! बस जरा एक दूसरा नज़ारा भी देख लें ! ये कवि नाजी दल का सदस्य था और आज अफ़सोस जता रहा है ! वही नाजी , जिनका कृत्य " यहूदियों " के प्रति जगजाहिर है ! अपराध देर से स्वीकार करने या कलई देर से खुलने के कारण अपराध की तीव्रता कम हो जाती है क्या ?? मुझे तो ये कविता एक मक्कारी नज़र आती है ! इस कवि के अन्दर का नाजी भेष बदल के आया है, मानवीयता की आडं में ये छिप के वार कर रहा है और सोची समझी मानसिकता के तहत साम्राज्यवाद के खिलाफ चल रहे माहौल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाह रहा है ! गौर से देखें तो पता चलेगा की यह शख्श इजरायल राष्ट्र को भी बड़ी चालाकी से नकार रहा है और इरान कट्टरपंथ- नाभिकीय इक्षा को " आम जन " की भावना बता रहा है ! अगर ये पश्चिम और इजरायल के राष्ट्रवाद को कोस रहा है तो ये इसका नाजी दर्द बोल रहा है, जो कभी पराजित हुआ था ! अब बताएं ! ये विवेचना कैसी है ? ha ha ....Santoshhttps://www.blogger.com/profile/15733814630193589718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8688826834262331339.post-25483799214238352972012-04-12T21:56:00.660+05:302012-04-12T21:56:00.660+05:30पहले तो बहुत आभार आपका इस कविता को अनूदित करने के ...पहले तो बहुत आभार आपका इस कविता को अनूदित करने के लिए ...जहाँ तक मैं इसे समझ पाया हूँ ,कि यह अनुवाद काफी प्रवाहमय और अर्थपूर्ण है ...जाहिर है कि हमारी ईच्छा इसके अर्थ तलाशने की ही थी | और उसमे यह अनुवाद पुरी तरह से खरा उतरता है ....हार्दिक बधाई आपको ...रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.com