आत्म - आख्यान
मैं कौन हूँ ??????
अब तक नहीं जाना?
मैं केन्द्र हूँ , हूँ मैं ही परिधि भी
मैं ही कारण मैं ही कारज
मैं सर्वव्यापी पर हूँ अदृश्य
मेरे ही इर्द-गिर्द घुमती है धुरी
राजनीति की , समाज की
मेरा ही मन्त्र-जाप करते होती है पूरी
तीर्थ यात्रा एक खद्दरधारी की संसद तक
मैं ही ,
घोषित लक्ष्य हूँ
तमाम कल्याणकारी आदर्शों का
पात्र हूँ सरकारी भिक्षा -दानों का
केन्द्र में हूँ सरकारी नैतिक वांग्मय के
मेरे ही उद्धारार्थ अनवरत है
अंतहीन ,
बहसें-मुबाहिसे , आरोप-प्रत्यारोप
वाद-विवाद , जूतम-पैजार
देश की संसद के बड़े से हाल में
जहाँ मेरा प्रवेश भी है ,लगभग असंभव
मैं अशरीरी हूँ , प्रेत हूँ
हाड़-मांस के चोले में घुसते ही
कर दिया जाता हूँ फिट
आश्चर्यजनक कुशलता से
'सवर्ण-दलित' 'अगडे-पिछड़े'
'हिंदू-मुस्लिम' 'लाल-हरे'
के तमाम उपलब्ध रेडीमेड खांचों में से किसी एक में
विवश हूँ , पर कायर नहीं हूँ मैं
समस्त सत्ता का पूंजीभूत केन्द्र हूँ मैं
संविधान की प्रस्तावना का मुख्य किरदार हूँ मैं
कार्टूनिस्टों की पेन्सिल की उकेर हूँ मैं
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अजी इस महान राष्ट्र का 'आम-आदमी' हूँ मैं .....
बेहतर है...आपको लगातार लिखना चाहिए ...बहुत संभावनाए हैं आपमें...
ReplyDeleteवर्तमान मनोसामाजिक,राजनितिक परिदृश्य के केन्द्रीय तत्व का चीत्कार, स्वयम की तलाश में आम आदमी।एक अतियथार्थवादी कविता, बहुत ही सघन अभिव्यक्ति ...मन को संत्रितप्त करने वाली ...बधाई
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